gulzar shayari

Gulzar Special Shayari Collection

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सुनो… जब कभी देख लुं तुमको तो मुझे महसूस होता है कि दुनिया खूबसूरत है
मोहब्बत के सफ़र से, वापसी है मेरी.. आज हर ख़ामोशी को मिटा देने का मन है जो भी छिपा रखा है मन में लूटा देने का मन है..
शाम से आँख में नमी सी है आज फिर आप की कमी सी है वक़्त रहता नहीं कहीं थमकर इस की आदत भी आदमी सी है
कैसे करें हम ख़ुद को तेरे प्यार के काबिल, जब हम बदलते हैं, तो तुम शर्ते बदल देते हो
किसी पर मर जाने से होती हैं मोहब्बत, इश्क जिंदा लोगों के बस का नहीं
तन्हाई की दीवारों पर घुटन का पर्दा झूल रहा हैं, बेबसी की छत के नीचे, कोई किसी को भूल रहा हैं
शोर की तो उम्र होती हैं ख़ामोशी तो सदाबहार होती
हैं
वक्त रहता नहीं कही भी टिक कर, आदत इसकी भी इंसान जैसी हैं
jotify shayari
हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक्त की शाख से लम्हें नहीं तोडा करते
दिल अगर हैं तो दर्द भी होंगा, इसका शायद कोई हल नहीं हैं
सामने आया मेरे, देखा भी, बात भी की मुस्कुराए भी किसी पहचान की खातिर कल का अखबार था, बस देख लिया, रख भी दिया
बेहिसाब हसरते ना पालिये जो मिला हैं उसे सम्भालिये
तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी, जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं
घर में अपनों से उतना ही रूठो कि आपकी बात और दूसरों की इज्जत, दोनों बरक़रार रह सके
कुछ बातें तब तक समझ में नहीं आती जब तक ख़ुद पर ना गुजरे
आदमी बुलबुला है पानी का और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है, फिर उभरता है, फिर से बहता है, न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है, वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का।
मैं वो क्यों बनु जो तुम्हें चाहिए तुम्हें वो कबूल क्यों नहीं जो मैं हूं
उतर रही हो या चढ़ रही हो ? क्या मेरी मुश्किलों को पढ़ रही हो ?
थोड़ा सा रफू करके देखिए ना फिर से नई सी लगेगी जिंदगी ही तो है
तेरी यादों से भरी है, मेरे दिल की तिजोरी, कोई कोहिनूर भी दे तो में सौदा ना करू…!!!
सुरमे से लिखे तेरे वादे आँखों की जबानी आते हैं मेरे रुमालों पे लब तेरे बाँध के निशानी जाते हैं
मत कर हिसाब तू मेरी मोहब्बत का, वरना ब्याज में तेरी जिंदगी गुजर जायेगी…!!!
तेरे इश्क़ में तू क्या जाने कितने ख्वाब पिरोता हूं एक सदी तक जागता हूं मैं एक सदी तक सोता हूं
gilzar shayari
हम जो तुमसे मिले इतेफ़ाक़ थोड़ी है, मिलकर तुमको छोड़ दे मजाक थोड़ी है…!!!
कुछ अलग करना हो तो भीड़ से हट के चलिए, भीड़ साहस तो देती हैं मगर पहचान छिन लेती हैं
अच्छी किताबें और अच्छे लोग तुरंत समझ में नहीं आते हैं, उन्हें पढना पड़ता हैं
गुल पोश कभी इतराये कहीं महके तो नज़र आ जाये कहीं तावीज़ बनाके पहनूं उसे आयत की तरह मिल जाये कहीं
पता चल गया है के मंज़िल कहां है चलो दिल के लंबे सफ़र पे चलेंगे सफ़र ख़त्म कर देंगे हम तो वहीं पर जहाँ तक तुम्हारे कदम ले चलेंगे
उम्मीद तो नही फिर भी उम्मीद हो कोई तो इस तरह आशिक़ शहीद हो
ना जाने क्यो रेत की तरह निकल जाते है हाथों से वो लोग, जिन्हें जिंदगी समझकर हम कभी खोना नहीं चाहते…!!!
इश्क़ उसी से करो जिसमे खामियां बेशुमार हो, ये खूबियों से भरे चेहरे इतराते बहुत है…!!!
कोई आहट नही बदन की कहीं फिर भी लगता है तू यहीं है कहीं वक्त जाता सुनाई देता है तेरा साया दिखाई देता है
तू समझता क्यूं नही है दिल बड़ा गहरा कुआँ है आग जलती है हमेशा हर तरफ धुआँ धुआँ है
टकरा के सर को जान न दे दूं तो क्या करूं कब तक फ़िराक-ए-यार के सदमे सहा करूं मै तो हज़ार चाहूँ की बोलूँ न यार से काबू में अपने दिल को न पाऊं तो क्या करूं
एक बीते हुए रिश्ते की एक बीती घड़ी से लगते हो तुम भी अब अजनबी से लगते हो
प्यार में अज़ीब ये रिवाज़ है, रोग भी वही है जो इलाज है.
जाने कैसे बीतेंगी ये बरसातें माँगें हुए दिन हैं, माँगी हुई रातें.
मैं दिया हूँ मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से हैं हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ हैं
बहुत अंदर तक जला देती हैं, वो शिकायते जो बया नहीं होती
तकलीफ़ ख़ुद की कम हो गयी, जब अपनों से उम्मीद कम हो गईं
घर में अपनों से उतना ही रूठो कि आपकी बात और दूसरों की इज्जत, दोनों बरक़रार रह सके
कौन कहता हैं कि हम झूठ नहीं बोलते एक बार खैरियत तो पूछ के देखियें
कुछ बातें तब तक समझ में नहीं आती जब तक ख़ुद पर ना गुजरे
शायर बनना बहुत आसान हैं बस एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल डिग्री चाहिए
वो चीज़ जिसे दिल कहते हैं, हम भूल गए हैं रख के कहीं
तेरे जाने से तो कुछ बदला नहीं, रात भी आयी और चाँद भी था, मगर नींद नहीं
कभी तो चौक के देखे वो हमारी तरफ़, किसी की आँखों में हमको भी वो इंतजार दिखे
ऐसा कोई ज़िंदगी से वादा तो नही था तेरे बिना जीने का इरादा तो नही था.
वो बेपनाह प्यार करता था मुझे गया तो मेरी जान साथ ले गया
झुकी हुई निगाह में, कहीं मेरा ख्याल था दबी दबी हँसी में इक, हसीन सा गुलाल था मै सोचता था, मेरा नाम गुनगुना रही है वो न जाने क्यूं लगा मुझे, के मुस्कुरा रही है वो
इस दिल में बस कर देखो तो ये शहर बड़ा पुराना है हर साँस में कहानी है हर साँस में अफ़साना है
कोई वादा नही किया लेकिन क्यों तेरा इंतज़ार रहता है बेवजह जब क़रार मिल जाए दिल बड़ा बेकरार रहता है
धीरे-धीरे ज़रा दम लेना प्यार से जो मिले गम लेना दिल पे ज़रा वो कम लेना
दबी-दबी साँसों में सुना था मैंने बोले बिना मेरा नाम आया पलकें झुकी और उठने लगीं तो हौले से उसका सलाम आया
खून निकले तो ज़ख्म लगती है वरना हर चोट नज़्म लगती है.
उड़ते पैरों के तले जब बहती है जमीं मुड़के हमने कोई मंज़िल देखी तो नही रात दिन हम राहों पर शामो सहर करते हैं राह पे रहते हैं यादों पे बसर करते हैं
इतना लंबा कश लो यारो, दम निकल जाए जिंदगी सुलगाओ यारों, गम निकल जाए
वो चेहरे जो रौशन हैं लौ की तरह उन्हें ढूंढने की जरूरत नही मेरी आँख में झाँक कर देख लो तुम्हें आइने की जरूरत नही
मेरे उजड़े उजड़े से होठों में बड़ी सहमी सहमी रहती है जबाँ मेरे हाथों पैरों में खून नही मेरे तन बदन में बहता है धुँआ
gilzar shayari
वक्त सालों की धुंध से निकल जायेगा तेरा चेहरा नज़र से पिघल जायेगा
वो शाम कुछ अजीब थी, ये शाम भी अजीब है वो कल भी पास पास थी वो आज भी करीब है
जीना भूले थे कहां याद नहीं! तुमको पाया है जहाँ सांस फिर आई वहीं
क्यूं बार बार लगता है मुझे कोई दूर छुपके तकता है मुझे कोई आस पास आया तो नही मेरे साथ मेरा साया तो नही
तुम मिले तो क्यों लगा मुझे, खुद से मुलाकात हो गई कुछ भी तो कहा नही मगर, ज़िंदगी से बात हो गई
शाम से आँख में नमी सी है आज फिर आपकी कमी सी है
ख़ामोश रहने में दम घुटता है और बोलने से ज़बान छिलती है डर लगता है नंगे पांव मुझे कोई कब्र पांव तले हिलती है
टूटी फूटी शायरी में लिख दिया है डायरी में आख़िरी ख्वाहिश हो तुम लास्ट फरमाइश हो तुम
मुस्कुराना, सहते जाना, चाहने की रस्म है ना लहू ना कोई आँसू इश्क़ ऐसा ज़ख्म है
हमने देखी है उन आँखों की खुशबू हाथ से छूके इसे रिश्तों का इल्ज़ाम न दो सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो
ख्वाबी ख्वाबी सी लगती है दुनिया आँखों में ये क्या भर रहा है मरने की आदत लगी थी क्यूं जीने को जी कर रहा है
सहमा सहमा डरा सा रहता है जाने क्यूँ जी भरा सा रहता है
एक पल देख लूँ तो उठता हूँ जल गया घर ज़रा सा रहता है.
मैं चुप कराता हूँ हर शब उमड़ती बारिश को मगर ये रोज़ गई बात छेड़ देती है
अनमोल नहीं लेकिन फिर भी पूछ तो मुफ़्त का मोल कभी
वक़्त की ज़र्ब से कट जाते हैं सब के सीने चाँद का छलका उतर जाए तो क़ाशें निकलें
ये शुक्र है कि मिरे पास तेरा ग़म तो रहा वगर्ना ज़िंदगी ने तो रुला दिया होता
महफ़िल में गले मिलकर वह धीरे से कह गए, यह दुनिया की रस्म है, इसे मुहोब्बत मत समझ लेना।
बहुत मुश्किल से करता हूँ तेरी यादों का कारोबार, मुनाफा कम है लेकिन गुज़ारा हो ही जाता है।
इतने लोगों में कह दो अपनी आँखों से, इतना ऊँचा न ऐसे बोला करे, लोग मेरा नाम जान जाते हैं।
वो चीज जिसे दिल कहते हैं, हम भूल गए हैं रख कर कहीं।।
तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा तो नहीं, तेरे बिना ज़िन्दगी भी लेकिन ज़िन्दगी तो नहीं।
ज्यादा कुछ नहीं बदलता उम्र के साथ बस बचपन की जिद्द समझौतों में बदल जाती हैं
बचपन में भरी दुपहरी में नाप आते थे पूरा मोहल्ला जब से डिग्रियां समझ में आयी पांव जलने लगे हैं
गुलज़ार साहब की शायरी | रहने दे उधार, एक मुलाकात यूं ही, सुना है "उधार" वालों को लोग भुलाया नहीं करते...!!
आज हर ख़ामोशी को मिटा देने का मन है, जो भी छिपा रखा है मन में लूटा देने का मन है..!!
कैसे गुजर रही है सब पूछते हैं, कैसे गुजारता हूँ, कोई नही पूछता..!!
तेरी तरह बेवफा निकले मेरे घर के आईने भी¸ खुद को देखूं तेरी तस्वीर नजर आती है..!!
तोड़कर जोड़ लो चाहे¸ हर चीज दुनिया की¸ सब कुछ काबिले मरम्मत है एतबार के सिवा..!!
कहीं किसी रोज यूं भी होता हमारी हालत तुम्हारी होती जो रातें हमने गुजारी मरके वो रातें तुमने गुजारी होती
उम्मीद भी अजनबी लगती है और दर्द पराया लगता है आईने में जिसको देखा था बिछड़ा हुआ साया लगता है
कोई तो करता होगा हमसे भी खामोश मोहब्बत.. किसी का हम भी अधूरा इश्क रहे होंगे…
आखिरी नुकसान था तू जिंदगी में, तेरे बाद मैंने कुछ खोया ही नहीं..
सब खफा हैं मेरे लहजे से, पर मेरे हालात से वाकिफ कोई नहीं..
तन्हाइयां कहती हैं कोई महबूब बनाया जाए, जिम्मेदारियां कहती हैं वक़्त बर्बाद बहुत होगा..
गुस्सा भी क्या करूं तुम पर तुम हंसते हुए बेहद अच्छे लगते हो !
जब कोई आपसे दो कदम पीछे हटे तो उसे उम्रभर खुश रहने की दुआ देकर चार कदम पीछे हट जाने में ही भलाई है…!!!
फ़िक्र तेरी है मुझे, इसमें कोई शक नहीं, तुझे कोई और देखे किसी को ये हक़ नहीं…!!!
कोई पूछ रहा है मुझसे अब मेरी ज़िन्दगी की कीमत, मुझे याद आ रहा है हल्का सा मुस्कुराना तुम्हारा।
मोहब्बत ज़िन्दगी बदल देती है, मिल जाए तब भी और ना मिले तब भी।
सुनो, ज़रा रास्ता तो बताना मोहब्बत के सफ़र से वापसी है मेरी।
इश्क़ में जलते हुए साँस तेजबी लगे राज़ खुलता ही नहीं कोई तो चाबी लगे।
ये इश्क़ मोहब्बत की रिवायत भी अजीब है पाया नहीं है जिसको उसे खोना भी नहीं चाहते।
उस उम्र से हमने तुमको चाहा है, जिस उम्र में हम जिस्म से वाकिफ ना थे।
एक वक़्त के बाद हर कोई गैर हो जाता है, उम्रभर किसी को अपना समझना बस वहम है…!!!
दौर नहीं रहा अब किसी से वफ़ा करने का, हद से ज्यादा प्यार करो तो लोग मतलबी समझने लगते है…!!!
माँगा नहीं रब से तुम्हे लेकिन ईशारा तुम्ही पर था, नाम बेशक नहीं लिया मगर पुकारा तुम्ही को था…!!!
मोहब्बत तो हर कोई कर लेता है मगर, इंतज़ार और वफ़ा हर किसी के बस की बात नहीं…!!!
तुम्हें जिंदगी के उजाले मुबारक अंधेरे हमें आज रास आ गए हैं तुम्हें पा के हम खुद से दूर हो गए थे तुम्हें छोड़कर अपने पास आ गए हैं
वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी, हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते.. वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी.
जिन दिनों आप रहते थे, आंख में धूप रहती थी अब तो जाले ही जाले हैं, ये भी जाने ही वाले हैं.
जबसे तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ लगाई है मीठा सा गम है, और मीठी सी तन्हाई है.
वक्त कटता भी नही वक्त रुकता भी नही दिल है सजदे में मगर इश्क झुकता भी नही
एक बार जब तुमको बरसते पानियों के पार देखा था यूँ लगा था जैसे गुनगुनाता एक आबशार देखा था तब से मेरी नींद में बसती रहती हो बोलती बहुत हो और हँसती रहती हो.
होती नही ये मगर हो जाये ऐसा अगर तू ही नज़र आए तू जब भी उठे ये नज़र
कैसे करें हम ख़ुद को तेरे प्यार के काबिल, जब हम बदलते हैं, तो तुम शर्ते बदल देते हो..!!
मैं थक गया था परवाह करते करते, ज़ब से बेपरवाह हूँ आराम से है..!!
नाराज तो नहीं हूं तुम्हारे जाने से, बस हैरान हूं कि तुमने एक बार भी मुड़ कर नहीं देखा..!!
कभी तो चौक के देखे वो हमारी तरफ़, किसी की आँखों में हमको भी वो इंतजार दिखे..!!
मेरा ख्याल है अभी, झुकी हुई निगाह में खिली हुई हँसी भी है, दबी हुई सी चाह में मैं जानता हूं, मेरा नाम गुनगुना रही है वो यही ख्याल है मुझे, के साथ आ रही है वो
.हम समझदार भी इतने हैं के उनका झूठ पकड़ लेते हैं और उनके दीवाने भी इतने के फिर भी यकीन कर लेते है
दौलत नहीं शोहरत नहीं,न वाह चाहिए “कैसे हो?” बस दो लफ़्जों की परवाह चाहिए
कभी जिंदगी एक पल में गुजर जाती है कभी जिंदगी का एक पल नहीं गुजरता
जब से तुम्हारे नाम की मिसरी होंठ से लगाई है मीठा सा गम मीठी सी तन्हाई है।
दर्द हल्का है साँस भारी है, जिए जाने की रस्म जारी है।
रिश्तों की अहमियत समझा करो जनाब इन्हे जताया नहीं निभाया जाता है।
धागे बड़े कमजोर चुन लेते हैं हम, और फिर पूरी उम्र गांठ बांधने में ही निकल जाती है।
कुछ अधूरे से लग रहे हो आज, लगता है किसी की कमी सी है।
तेरे जाने से कुछ बदला तो नहीं, रात भी आई थी और चाँद भी, मगर नींद नहीं।
एक खूबसूरत सा रिश्ता खत्म हो गया हम दोस्ती निभाते रहे और उसे इश्क़ हो गया।
इश्क़ की तलाश में क्यों निकलते हो तुम, इश्क़ खुद तलाश लेता है जिसे बर्बाद करना होता है।
तुझ से बिछड़ कर कब ये हुआ कि मर गए, तेरे दिन भी गुजर गए और मेरे दिन भी गुजर गए.
आऊं तो सुबह, जाऊं तो मेरा नाम शबा लिखना, बर्फ पड़े तो बर्फ पे मेरा नाम दुआ लिखना
वो शख़्स जो कभी मेरा था ही नही, उसने मुझे किसी और का भी नही होने दिया.
सालों बाद मिले वो गले लगाकर रोने लगे, जाते वक्त जिसने कहा था तुम्हारे जैसे हज़ार मिलेंगे.
जब भी आंखों में अश्क भर आए लोग कुछ डूबते नजर आए चांद जितने भी गुम हुए शब के सब के इल्ज़ाम मेरे सर आए
बेशूमार मोहब्बत होगी उस बारिश की बूँद को इस ज़मीन से, यूँ ही नहीं कोई मोहब्बत मे इतना गिर जाता है!
यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
आप के बाद हर घड़ी हम ने आप के साथ ही गुज़ारी है
तुमको ग़म के ज़ज़्बातों से उभरेगा कौन, ग़र हम भी मुक़र गए तो तुम्हें संभालेगा कौन!
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई जैसे एहसान उतारता है कोई
तुम्हे जो याद करता हुँ, मै दुनिया भूल जाता हूँ । तेरी चाहत में अक्सर, सभँलना भूल जाता हूँ ।
आइना देख कर तसल्ली हुई हम को इस घर में जानता है कोई
तन्हाई अच्छी लगती है सवाल तो बहुत करती पर,. जवाब के लिए ज़िद नहीं करती..
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं
उनकी चाहत में हम कुछ यूँ बंधे है कि, वह साथ भी नहीं और हम अकेले भी नहीं..!!
दाद देते है तुम्हारे नजर अंदाज करने के हुनर को, जिसने भी सिखाया वो उस्ताद कमाल का होगा..!!
वो लोग डूबा रहे है मुझे, जिन्हें कभी हमने तैरना सिखाया था..!!
जिन्दगी की राह में मिलेंगे तुम्हें हजारों हमसफ़र, लेकिन उम्र भर भूल न पाओ जिसे वो मुलाकात हूँ मैं..!!
घर का दरवाजा खुला छोड़ दिया है मैंने, शायद आ जाऐ कभी रूठ के जाने वाला..!!
"खता उनकी भी नहीं यारो वो भी क्या करते, बहुत चाहने वाले थे किस किस से वफ़ा करते !"
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को खुद से पहले सुला देता, हूँ मगर रोज़ सुबह ये मुझसे पहले जाग जाती है।
आइना देख कर तसल्ली हुई, हम को इस घर में जानता है कोई।
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर, आदत इस की भी आदमी सी है।
मोहब्बत आपनी जगह, नफरत अपनी जगह मुझे दोनो है तुमसे.
ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है
मुझसे तुम बस मोहब्बत कर लिया करो, नखरे करने में वैसे भी तुम्हारा कोई जवाब नहीं!
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी
तजुर्बा कहता है रिश्तों में फैसला रखिए, ज्यादा नजदीकियां अक्सर दर्द दे जाती है...
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं हवा चले न चले दिन पलटते रहते है
रात को भू कुरेद कर देखो, अभी जलता हो कोई पल शायद!
कोई समझे तो एक बात कहूँ साहब.., तनहाई सौ गुना बेहतर है मतलबी लोगों से..!
शाम से आँख में नमी सी है आज फिर आप की कमी सी है
अगर कसमें सब होती, तो सबसे पहले खुदा मरता!
हम अपनों से परखे गए हैं कुछ गैरों की तरह, हर कोई बदलता ही गया हमें शहरों की तरह....!
वो उम्र कम कर रहा था मेरी मैं साल अपने बढ़ा रहा था
मुद्दतें लगी बुनने में ख्वाब का स्वेटर, तैयार हुआ तो मौसम बदल चूका था!
तुम लौट कर आने की तकलीफ़ मत करना, हम एक ही मोहब्बत दो बार नहीं किया करते!
कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था आज की दास्ताँ हमारी है
जागना भी काबुल है तेरी यादों में रातभर, तेरे अहसासों में जो सुकून है वो नींद में कहाँ!
तमाशा करती है मेरी जिंदगी, गजब ये है कि तालियां अपने बजाते हैं!
काई सी जम गई है आँखों पर सारा मंज़र हरा सा रहता है (जिंदगी के ऊपर ग़ुलज़ार शायरी)
वो चीज जिसे दिल कहते हैं, हम भूल गए हैं रख कर कहीं!!
हाथ छुटे तो भी रिश्ते नहीं छोड़ा करते, वक़्त की शाख से रिश्ते नहीं तोड़ा करते!
वफा की उम्मीद ना करो उन लोगों से, जो मिलते हैं किसी और से होते है किसी और के...!
उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में एक पुराना ख़त खोला अनजाने में।
फिर वहीं लौट के जाना होगा यार ने कैसी रिहाई दी है।
अपने साये से चौक जाते हैं हम, उम्र गुजरी है इस कदर तनहा।
आप के बाद हर घड़ी हम ने, आप के साथ ही गुज़ारी है।
कुछ अलग करना हो तो भीड़ से हट के चलिए, भीड़ साहस तो देती हैं मगर पहचान छिन लेती हैं।
कल फिर चाँद का ख़ंजर घोंप के सीने में रात ने मेरी जाँ लेने की कोशिश की
हम तो कितनों को मह-जबीं कहते आप हैं इस लिए नहीं कहते
चाँद होता न आसमाँ पे अगर हम किसे आप सा हसीं कहते
वो जो उठातें हैं क़िरदार पर उंगलियां, तोहफे में उनको आप आईने दीजिए।
सहर न आई कई बार नींद से जागे थी रात रात की ये ज़िंदगी गुज़ार चले
कोई न कोई रहबर रस्ता काट गया जब भी अपनी रह चलने की कोशिश की
इतने लोगों में कह दो अपनी आँखों से, इतना ऊँचा न ऐसे बोला करे, लोग मेरा नाम जान जाते हैं!
मंजर भी बेनूर था और फिजायें भी बेरंग थीं बस फिर तुम याद आये और मौसम सुहाना हो गया!
कितनी लम्बी ख़ामोशी से गुज़रा हूँ उन से कितना कुछ कहने की कोशिश की
जब भी ये दिल उदास होता है, जाने कोन दिल के पास होता है!
हसरत थी दिल में की एक खूबसूरत महबूब मिले, मिले तो महबूब मगर क्या खूब मिले।
कोई अटका हुआ है पल शायद वक़्त में पड़ गया है बल शायद
आ रही है जो चाप क़दमों की खिल रहे हैं कहीं कँवल शायद
दिल के रिश्ते‍‍‍ ✧ हमेशा किस्मत से ही बनते है✧¸ वरना मुलाकात तो रोज ✧ हजारों1000 से होती है✧
कुछ शिकायत बनी रहे¸ तो बेहतर है✧¸ चाशनी में डूबे रिश्ते‍‍‍ वफादार ❌नही होते।
कैसे गुजर रही है✧¸ सब पूछते है✧❓✧¸ कैसे गुजारता हूं❓ कोई ❌नही पूछता ।
अच्छी किताबें और अच्छे लोग, तुरंत समझ में नहीं आते, उन्हें पढना पड़ता हैं।
मेरी ख़ामोशी में सन्नाटा भी है, शौर भी है तूने देखा ही नहीं आँखों में कुछ और भी है।
बहुत अंदर तक जला देती हैं, वो शिकायते जो बया नहीं होती।
मैंने दबी आवाज़ में पूछा? मुहब्बत करने लगी हो? नज़रें झुका कर वो बोली! बहुत।
कोई पुछ रहा हैं मुझसे मेरी जिंदगी की कीमत, मुझे याद आ रहा है तेरा हल्के से मुस्कुराना। मैं दिया हूँ! मेरी दुश्मनी तो सिर्फ अँधेरे से हैं, हवा तो बेवजह ही मेरे खिलाफ हैं।
बिगड़ैल हैं ये यादे, देर रात को टहलने निकलती हैं।
यूँ तो हम अपने आप में गुम थे सच तो ये है की वहां भी तुम थे।
काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी तीनों थे हम, वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी।
तेरी तरह बेवफा निकले मेरे घर के ⚪️आईने भी¸ खुद को देखूं ✧ तेरी तस्वीर नजर आती है✧।
सच को तमीज ही ❌नही बात करने की¸ झूठ⚠️ को ‍देखो कितना मीठा बोलता है✧।
कुछ ऐसे हो गए है✧ इस दौर के रिश्ते‍‍‍¸ आवाज अगर तुम ना दो तो ✧ बोलते वह भी ❌नही।
जाने किस जल्दी में थी जन्म दिया, दौड़ गयी क्या खुदा देख लिया था कि मुझे छोड़ गयी बहुत मुश्किल से करता हूँ, तेरी यादों का कारोबार, मुनाफा कम है, पर गुज़ारा हो ही जाता है सुनो….ज़रा रास्ता तो बताना.
मोहब्बत के सफ़र से, वापसी है मेरी.. आज हर ख़ामोशी को मिटा देने का मन है जो भी छिपा रखा है मन में लूटा देने का मन है..
चुप हो तो ✧ पत्थर ना समझना मुझे¸ दिल पर असर हुआ है✧¸ किसी अपने की बात का✧।
तुझसे कोई शिकवा शिकायत ❌नही है✧ जिंदगी तूने जो भी दिया है✧ वही बहुत है✧।
वह चीज जिसे दिल कहते है✧ हम भूल गए है✧ रखकर कहीं ✧।
एक पुराना मौसम लौटा ✧ याद भरी पुरवाई भी¸ ऐसा तो कम ही होता है✧ वह भी हो तन्हाई भी ✧।
गुलाम थे ✧ तो हम सब हिंदुस्तानी थे¸ आजादी ने हमें ️हिंदू मुसलमान☪️ बना दिया ✧।
उम्र बढ़ती↗️ रहेगी साल घटती↘️ रहेंगे और होती रहेंगे गुफ्तगू है✧प्पी बर्थडे टू यू ✧
दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई जैसे एहसान उतारता है कोई आइना देख कर तसल्ली हुई हम को इस घर में जानता है कोई
तुम्हारी ख़ुश्क सी आँखें भली नहीं लगतीं वो सारी चीज़ें जो तुम को रुलाएँ, भेजी हैं हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते वक़्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
ज़मीं सा दूसरा कोई सख़ी कहाँ होगा ज़रा सा बीज उठा ले तो पेड़ देती है काँच के पीछे चाँद भी था और काँच के ऊपर काई भी तीनों थे हम वो भी थे और मैं भी था तन्हाई भी
खुली किताब के सफ़्हे उलटते रहते हैं हवा चले न चले दिन पलटते रहते है शाम से आँख में नमी सी है आज फिर आप की कमी सी है
वो उम्र कम कर रहा था मेरी मैं साल अपने बढ़ा रहा था कल का हर वाक़िआ तुम्हारा था आज की दास्ताँ हमारी है
काई सी जम गई है आँखों पर सारा मंज़र हरा सा रहता है उठाए फिरते थे एहसान जिस्म का जाँ पर चले जहाँ से तो ये पैरहन उतार चले
बहुत छाले है✧ उसके पैरों में ¸ कमबख्त उसूलों पर चला होगा✧।
कैसे गुजर रही है✧¸ सब पूछते है✧❓✧¸ कैसे गुजारता हूं❓ कोई ❌नही पूछता ।
हँसता तो मैं रोज़ हूँ मगर खुश हुए ज़माना हो गया
वो चीज़ जिसे दिल कहते हैं, हम भूल गए हैं रख के कहीं।
बहुत मुश्किल से करता हु तेरी यादों का कारोबार माना मुनाफा कम है पर गुज़ारा हो जाता है
कौन कहता हैं कि हम झूठ नहीं बोलते एक बार खैरियत तो पूछ के देखियें
शायर बनना बहुत आसान हैं बस एक अधूरी मोहब्बत की मुकम्मल डिग्री चाहिए
छोटा सा साया था, आँखों में आया था हमने दो बूंदों से मन भर लिया
कुछ जख्मो की उम्र नहीं होती हैं ताउम्र साथ चलते हैं, जिस्मो के ख़ाक होने तक
उनके दीदार के लिए दिल तड़पता है, उनके इंतजार में दिल तरसता है, क्या कहें इस कम्बख्त दिल को.. अपना हो कर किसी और के लिए धड़कता है।
बदल जाओ वक़्त के साथ या वक़्त बदलना सीखो, मजबूरियों को मतं कोसो, हर हाल में चलना सीखो!
कहानी शुरू हुई है तो खतम भी होगी किरदार गर काबिल हुए तो याद रखे जाएंगे..
मुद्दतें लगी बुनने में ख्वाब का स्वेटर, तैयार हुआ तो मौसम बदल चूका था!

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2 Comments

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